जान सलामत

सारा मंज़र बदल गया, जीने का अंदाज़ बदल गया

सब जकड़ में आ रहे है, ख़ुदा ये कौनसी क़यामत है

जब सोचा चलो छुट्टी हुई, अब दिल को कुछ राहत है

ठीक उसी पल ये आ लौटा, सांसो की बड़ी आफ़त है

यूँ भी कई फासले थे हमारे दिलों में और दिमागों में

सब घुसकर कोनों में बैठे हैं, कैसी बासी नियामत है

जब साँसों का ये मर्ज़ न था, मिलने को तब भी तरसते थे 

हम दिल के मरीज़ों को बस, विसाल-ए-यार की चाहत है

एक अरसा हुआ है बाजार घूमे, सड़को पे तफरी किये

घरों में बंद जेब भले ढ़ीली है जान फिर भी सलामत है 

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